hindisamay head


अ+ अ-

कविता

कुल्हाड़ी

नरेंद्र जैन


यहाँ लकड़ी कटती है लगातार
थोड़ा-थोड़ा आदमी भी कटता है

किसी की
उम्र कट जाती है
और पड़ी होती धूल में टुकड़े की तरह

शोर से भरी
इस गली में
कहने और सुनने की इच्छा भी कट जाती
वह फड़फड़ाती घायल चिड़िया की तरह

जब कटती है लकड़ी
दो टुकड़ों में
कट-कटकर गिरते जाते
स्वप्न किसी के

बाजवक्त
जब काटा जाता कोई बेडौल तना
किसी कोटर के अंधकार से
सहसा गिरता है बचपन

लकड़ी ही नहीं
अपनी दिनचर्या में
आदमी भी कटता है यहाँ।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में नरेंद्र जैन की रचनाएँ



अनुवाद